आयुर्वेद क्या है? एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति की आधुनिक दुनिया में प्रासंगिकता

आयुर्वेद क्या है? एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति की आधुनिक दुनिया में प्रासंगिकता

आयुर्वेद क्या है? एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति की आधुनिक दुनिया में प्रासंगिकता

परिचय आयुर्वेद भारत की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है, जिसकी जड़ें वेदों में पाई जाती हैं। यह केवल रोगों का इलाज नहीं करता बल्कि जीवन जीने की एक संपूर्ण पद्धति है। वर्तमान समय में जब एलोपैथिक चिकित्सा के दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं, तब आयुर्वेद का महत्व फिर से बढ़ रहा है। यह न केवल शरीर के रोगों को जड़ से ठीक करता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन बनाए रखने में भी सहायक है।

आयुर्वेद का इतिहास आयुर्वेद का उद्गम अथर्ववेद में बताया गया है। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता इसके दो प्रमुख ग्रंथ हैं। चरक संहिता मुख्यतः औषध विज्ञान और आचार्य चरक के विचारों पर आधारित है, जबकि सुश्रुत संहिता शल्य चिकित्सा (सर्जरी) पर केंद्रित है और आचार्य सुश्रुत द्वारा रचित है। इन ग्रंथों में मानव शरीर की रचना, रोगों के कारण, उनके लक्षण और उपचार विधियों का विस्तृत वर्णन है।

त्रिदोष सिद्धांत आयुर्वेद तीन दोषों – वात, पित्त और कफ – पर आधारित है। इनका संतुलन ही स्वस्थ जीवन की कुंजी है।

  • वात दोष: यह गति, संचार और तंत्रिका तंत्र से संबंधित है। जब यह असंतुलित होता है, तो शरीर में गैस, जोड़ों का दर्द और अनिद्रा जैसी समस्याएँ होती हैं।
  • पित्त दोष: यह अग्नि, पाचन और चयापचय से संबंधित होता है। इसका असंतुलन एसिडिटी, जलन और चिड़चिड़ापन ला सकता है।
  • कफ दोष: यह संरचना, चिकनाई और प्रतिरक्षा शक्ति से संबंधित है। असंतुलन से वजन बढ़ना, श्लेष्मा और सुस्ती हो सकती है।

आधुनिक चिकित्सा बनाम आयुर्वेद एलोपैथी जहाँ लक्षणों का उपचार करती है, वहीं आयुर्वेद कारण को जड़ से समाप्त करता है। एलोपैथिक औषधियाँ त्वरित राहत देती हैं, लेकिन वे अक्सर साइड इफेक्ट्स के साथ आती हैं। आयुर्वेदिक औषधियाँ प्राकृतिक होती हैं और उनके दुष्प्रभाव नगण्य होते हैं। इसके अलावा, आयुर्वेद रोग की रोकथाम पर अधिक ज़ोर देता है।

आयुर्वेदिक उपचार की विधियाँ

  • पंचकर्म: यह शरीर की शुद्धि और संतुलन के लिए पाँच प्रकार की प्रक्रियाएँ हैं – वमन, विरेचन, बस्ती, नस्य और रक्तमोक्षण।
  • रसायन चिकित्सा: यह कायाकल्प और दीर्घायु के लिए की जाती है।
  • सत्त्ववज चिकित्सा: यह मानसिक स्वास्थ्य और तनाव से संबंधित है।

आयुर्वेदिक आहार “आपकी थाली ही आपकी औषधि है” – इस सिद्धांत पर आयुर्वेद आधारित है। आयुर्वेदिक आहार व्यक्ति के दोष, ऋतु और स्थान के अनुसार तय किया जाता है। भोजन को समय पर, शांत मन से और ठीक प्रकार चबाकर खाने की सलाह दी जाती है। ताज़ा, सात्विक, और मौसम के अनुसार भोजन उत्तम माना जाता है।

आधुनिक संदर्भ में आयुर्वेद का स्थान आज की दुनिया में आयुर्वेद का पुनर्जागरण देखा जा रहा है। WHO ने भी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को मान्यता दी है। कई शोध संस्थान आयुर्वेद पर वैज्ञानिक अनुसंधान कर रहे हैं। भारत सरकार ने आयुष मंत्रालय की स्थापना की है ताकि आयुर्वेद और अन्य भारतीय चिकित्सा पद्धतियों का प्रचार-प्रसार हो सके।

आयुर्वेदिक उत्पादों की वैश्विक मांग आयुर्वेदिक उत्पाद जैसे च्यवनप्राश, हर्बल चाय, प्राकृतिक स्किनकेयर और डाइजेस्टिव सप्लीमेंट्स की मांग वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ रही है। योग और ध्यान के साथ इनका संयोजन समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है।

निष्कर्ष आयुर्वेद केवल चिकित्सा नहीं, एक जीवन पद्धति है जिसे अपनाकर हम एक संतुलित, रोगमुक्त और मानसिक रूप से सशक्त जीवन जी सकते हैं। इसकी वैज्ञानिकता और परिणाम आज की आधुनिक दुनिया में भी सिद्ध हो रही है। हमें इस प्राचीन ज्ञान को फिर से अपनाकर अपने स्वास्थ्य को एक नई दिशा देनी चाहिए।

 

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